वो बारिश की बुँदे वो सरसराती हवा........
आज भी याद है वो खुबसूरत समां........
जब जब उस गली से गुजारी मैं यादों का झोंका लौट के लाया सारी बात.......
अनकहे अनसुने वो मेहेकते ज़ज्बात........
भीगते पत्थर पे लिखा हमने एक दूजे का नाम.........
समझ भी न पाए थे रास्तों को और गुजर भी गयी वो शाम.........
चाहत के उस मंजर को रोज़ सिराहे रख कर सोया करते है.......
तेरे आने की आह्ट को रोज़ सुनते है और रोज़ खुद को दिलासा दिया करते है........!!!
निशा
आज भी याद है वो खुबसूरत समां........
जब जब उस गली से गुजारी मैं यादों का झोंका लौट के लाया सारी बात.......
अनकहे अनसुने वो मेहेकते ज़ज्बात........
भीगते पत्थर पे लिखा हमने एक दूजे का नाम.........
समझ भी न पाए थे रास्तों को और गुजर भी गयी वो शाम.........
चाहत के उस मंजर को रोज़ सिराहे रख कर सोया करते है.......
तेरे आने की आह्ट को रोज़ सुनते है और रोज़ खुद को दिलासा दिया करते है........!!!
निशा
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