अच्छाई की कीमत है कितनी,
रोटी , कपडा और मकान,
एक वक़्त सिर्फ इसके लिए जीता था इंसान,
आज बना इतना बेइमान,
झूठ, कपट, लालच, हवस भरी सोच लिए खुद में हैरान,
सुख का भागिदार बने हर कोई,
दुःख की घडी में अपनों की ही नियत सोयी,
देखो कितनी विडम्बना है छाई,
कलयुग की ये अजब अनोखी दुनिया में,
मिले आगे कुआँ पीछे खाइ……. !!!
निशा :) smile always
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