हाथों का कम्पन, सवालों की उलझन,
खून पसीने से सींचकर, जिस औलाद के लिए की कुर्बान जवानी,
आज उसी ने सर से छत छिनी, दो घूँट भी पूछा न पानी,
बूढ़ा नकारा समझ, उनका आदर, उनकी क़द्र ना जानी,
मुझे वृद्धाश्रम में मिली ऐसी अनगिनत काहानी,
ये है उन लोगो का विस्तार जिन्हें जीने का मिला न आधार,
अकेलेपन से जुझते दर्द के बीच इंतज़ार में बीता उनके जीवन का सार…. !!!
निशा :) smile always
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