ज़िन्दगी
को लेना और देना हमारे बस में नहीं पर आज के समाज का चेहरा कुछ और ही
कहानी कहता है जिसमे आतंकवाद एक सबसे बड़ा भय है इंसानियत को जड़ से उखाद्द
देने का भय……:-
रक्त से लतपत लाशों का ढेर था,
दहशत से थरथराता शेहेर का वो कोना,
आँखों में विलुप्त खौफ का मंज़र था,
कितनी भावनाओं का किया कत्ले-आम,
कितने घरों का सपना टूटा,
कितने आँखों को दिए अश्रु,
कितने अपनों का साथ छूटा,
इंसान की इस वैशी प्रवृत्ति का,
सही अर्थ कोई मुझे समझाए,
मासूम ज़िन्दगी से खेलते,
इस घ्रणित कृत्य को होने से कोई तो रोक पाए,
कभी मज़हब, कभी देश, कभी ज़मीर का लिया आसरा,
किसी न किसी को मकसद बना के लूटा ज़िन्दगी भरा बसेरा,
भय में लिपटे आज के सच की कटुता का है ये चेहरा,
आतंक के इस भयानक रूप से परिचय हुआ मेरा……
आतंक के इस भयानक रूप से परिचय हुआ मेरा…………!!!!!