आसमान की चादर ओढ़े, धरती के बिछौने में सोये
लिपटे खुद में ठण्ड से ठिठुर कर, फिर भी है सपनो में खोये
न घर के छत की कोई खबर, और रहते रास्तों में यूँही बेघर
न उनको आज का कोई डर, न ही उनको आने वाले कल की फिकर
ये है दुनिया का एक हिस्सा, जहाँ इन्सान एक रोटी पे जीता
और एक दुनिया का ऐसा हिस्सा, जहाँ सिर्फ खेल के नाम पर मनचाही बोली से लुटता पैसा
कोई हर दिन एक- एक पैसे को जोड़, अपने बच्चो को रोटी खिलाते
जी तोड़ मेहनत करके भी, एक घर ले सके इतना न कमाते
और कोई पैसे के ढेर को कहाँ संभाले, ये समझ न पाते
उसकी फिक्र में न ही एक दिन को चैन मिलता, न ही एक वक़्त को सो पाते
कैसी ये दुनिया उप्परवाले ने बनायीं , सोच समझ कर ये रचना करायी
कहीं भूक से बिलखती आस, कहीं पैसे कमाने की ख़त्म न होती प्यास
कहीं रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी को जीने के लिए हर दिन तडपन
कहीं पुश्तैनी जिंदगियों को बरक़रार रखने के लिए हर दिन उलझन
पर यहाँ जो आया है वो क्या अपने साथ लेके जायेगा
हर इन्सान अपने हिस्से के दुःख और सुख खुद यही भोग के जायेगा
हर रात की उम्र होती है कम और उजाले के साथ उठती नयी उमंग
कभी तो ये वक़्त भी बदल जायेगा , नया दौर लौट के आएगा
कभी तो ऐसा भी होगा , जब इन्सान - इन्सान में परिस्थितियों का फर्क न कहलायेगा ....!!!
निशा :)
लिपटे खुद में ठण्ड से ठिठुर कर, फिर भी है सपनो में खोये
न घर के छत की कोई खबर, और रहते रास्तों में यूँही बेघर
न उनको आज का कोई डर, न ही उनको आने वाले कल की फिकर
ये है दुनिया का एक हिस्सा, जहाँ इन्सान एक रोटी पे जीता
और एक दुनिया का ऐसा हिस्सा, जहाँ सिर्फ खेल के नाम पर मनचाही बोली से लुटता पैसा
कोई हर दिन एक- एक पैसे को जोड़, अपने बच्चो को रोटी खिलाते
जी तोड़ मेहनत करके भी, एक घर ले सके इतना न कमाते
और कोई पैसे के ढेर को कहाँ संभाले, ये समझ न पाते
उसकी फिक्र में न ही एक दिन को चैन मिलता, न ही एक वक़्त को सो पाते
कैसी ये दुनिया उप्परवाले ने बनायीं , सोच समझ कर ये रचना करायी
कहीं भूक से बिलखती आस, कहीं पैसे कमाने की ख़त्म न होती प्यास
कहीं रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी को जीने के लिए हर दिन तडपन
कहीं पुश्तैनी जिंदगियों को बरक़रार रखने के लिए हर दिन उलझन
पर यहाँ जो आया है वो क्या अपने साथ लेके जायेगा
हर इन्सान अपने हिस्से के दुःख और सुख खुद यही भोग के जायेगा
हर रात की उम्र होती है कम और उजाले के साथ उठती नयी उमंग
कभी तो ये वक़्त भी बदल जायेगा , नया दौर लौट के आएगा
कभी तो ऐसा भी होगा , जब इन्सान - इन्सान में परिस्थितियों का फर्क न कहलायेगा ....!!!
निशा :)
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