Sunday, September 16, 2012

कुछ अनसुनी बातें....

आज अजीब सी एक बात हुई....
तनहा अकेली राह में एक दोस्त से मुलाकात हुई.....
दोस्ती के उस एहसास में जिस उम्मीद की आस लगा रखी थी.....
उस उम्मीद को मैंने अपनी आँखों में दम तोड़ते हुए देखा......
नहीं समझ सकी यह कुसूर था मेरा या उसका......
शायद उसने समझ लिया मुझे उस भीड़ का हिस्सा........
जो लोग स्वार्थ की बनावट में मशहूर करते है अपना किस्सा........
मैं तो चली थी उस राह में एक अंतरिम दो

स्ती को निभाने.....
प्यार से भरी हर उम्मीद को विश्वास के धागों में पिरोने,.......
पर शायद कुछ बाकि रह गया था खुद के बारे में बताना......
जो पढ़ ना सका वो मेरी आँखों में और पड़ा मुझे जाताना............!!!

निशा

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