Sunday, September 16, 2012

खुले आसमान की तरफ नज़र उठा के जो देखा....
रात के अन्धेरेपन को चीरते हुए कई रोशनी के दिए जल रहे थे.......
मेरे आँगन में तारों की बरात थी आई.......
चांदनी में सराबोर रोशनी के जगमग फूल खिल रहे थे.........
मैंने पूछा उस एक तारे से तू क्यूँ अपनी रोशनी से इस दुनिया को रोशन बनाता है.........
लोग तो सारे सिर्फ चाँद की बात किया करते है........
और तू उनको ही अपनी रोशनी से राह दिखाता है..........
वो बोला चाँ
द तो सिर्फ होता ही एक है........
मैं तो हजारों की गिनती में मिलता हूँ.........
उसका अस्तित्व तो है सिर्फ दो दिन का.........
मैं तो हर दिन आसमान को रोशन किया करता हूँ.........!!!

निशा

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