Tuesday, September 25, 2012

ऐ दिले नादान संभल भी जा....

ऐ दिले नादान संभल भी जा....
रुक जरा तू और मुझे बता.....
ये किसके लिए धड़कन का गीत तू गुनगुना रहा है......
उसकी धुन में है कैसी कशिश की तू खिंचा चला जा रहा है.......
तपिश ये कैसी ये कैसी चुभन है.......
कहते है लोग ये बस प्यार की लगन है........
जिसमे तू धुन्दता ख़ुशी का लम्हा........
भीड़ के बीच भी पाए तू खुद को तनहा.......
रुक जरा तू अब संभल भी जा.........
प्यार का नगमा तू यूँ न गुनगुना.........
दर्द है ये ऐसा की तू आँखों की नमी के साथ भी मुस्कराएगा.......
प्यार का रंग चढ़ेगा और तू खुद को और दर्द में पायेगा........
ऐ दिले नादान संभल भी जा....
रुक जरा तू और मुझे बता.....!!!!

निशा :)

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