Sunday, September 16, 2012

पूछो ना देश का क्या हश्र हो रहा है........

पूछो ना देश का क्या हश्र हो रहा है........
जनता जाग रही है और हर एक नेता सो रहा है........
भूख से बिलखती बच्चो की किलकारियां........
आज भी गूंजती है गली गली में यहाँ........
आँखें है नम हाथ है ख़ाली........
एक वक़्त की रोटी मिलनी है मुश्किल कहाँ भरी हुई थाली................
आज के नेताओं के भ्रष्ट रूप को देख के हर दिल रोता है..........
क्या ५० साल की आजादी का जश्न ऐसे ही होता है..........
दुनिया क
े साथ हाथ मिलाने में कोई कमी ना रखी है.........
पर खुद के घर में झाँकने की जरुरत किसी ने ना देखी है.............
जब जब आतंकवाद की बात हुई हर नेता ने अपना मुह मोड़ लिया.............
मरते रहे लोग रास्तों में और दो पल का धाँदास बंधाकर यूँही दुःख में छोड़ दिया..........
ये कैसी होड़ लगी है बस एक कुर्सी को पाने में.............
देश को बाँट रहे है टुकडो में और कहते है हम है साथ हर मजहब को निभाने में
देश को बाँट रहे है टुकडो में और कहते है हम है साथ हर मजहब को निभाने में...........!!!!

निशा

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