Monday, April 15, 2013

कलयुग की ये दुनिया.....

अच्छाई की कीमत है कितनी,
दो गज ज़मीन जितनी ,
नेकी कर दरिया में डाल,
ना कर तो दुनिया  खड़े करे सवाल,
रोटी , कपडा और मकान,
एक वक़्त सिर्फ इसके लिए जीता था इंसान,
आज बना इतना बेइमान,
झूठ, कपट, लालच, हवस भरी सोच लिए खुद में हैरान,
सुख का भागिदार बने हर कोई,
दुःख की घडी में अपनों की ही नियत सोयी,
देखो कितनी विडम्बना है छाई,
कलयुग की ये अजब अनोखी दुनिया में,
मिले आगे कुआँ पीछे खाइ……. !!!
निशा :) smile always

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