गुजरे कल से निकलकर मेरा आज,
नए दौर में बदलेंगे रोज़ के किस्से,
सामने चुनौती देता ये वक़्त जाने क्या- क्या दिखलायेगा,
बीती बातों में थी शर्म हया,
घूँघट में छिपा था चाँद कभी,
घूँघट में छिपा था चाँद कभी,
पर आज किसी को कहाँ फिकर,
खुलेपन के इस दौर से कौन शख्स यहाँ बच पायेगा,
मोल थे पैसे के बहुत,
एक-एक दाने को मुहताज था कभी,
एक-एक दाने को मुहताज था कभी,
पर आज इन सब का करे कौन ज़िकर,
हाथों के मैल के जैसा ये भी कभी कम कभी ज्यादा तू पायेगा ,
ज़िन्दगी की हिस्सेदारी मे,
प्यार था अनमोल कभी,
धीरे-धीरे सीमा से परे ,
इस अनमोल शब्द का अर्थ भी विचलित मन भूलता जाएगा गुजरे कल से निकलकर ………. ……।!!!
nisha :) smile always

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