Wednesday, March 13, 2013

उम्मीदों की गठरी

उम्मीदों की गठरी बांध कर ,
हम जब चल पड़े घर से निकल कर,
काटों की चुभन मिली हर मोड़ पर,
हाथों की लकीरों को मुट्ठी में कैद कर,
मंजिलों को पाने की चाह लिए,
टूटते ख्वाबों को छोड़कर,
हाथों से फिसलती रेत की तरह,
छुटा कहीं किसी का साथ भी,
पर फिर नए रिश्तों की गांठ बांध ,
लिया हाथों में हाथ भी,
सब्र के साथ पुरे किये वादे कई,
सहेजता से पार की मंजिल नयी,
विश्वास खुद में कभी छोड़ा नहीं,
जीने की ललक के साथ,
जिया ज़िन्दगी को जी भर के यहीं .....

nisha :) smile always

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