Sunday, March 17, 2013

खुदा से पूछूँ......

तरसते और भूख में व्याकुल,
मासूम आस भरी निगाहों से देख,
दोनों हाथ जो उसने मेरी तरफ बढाए,
सोच की गिरफ्त में कैद कर मुझे,
दर्द के किस्से को महसूस कराकर,
खुदा  से पूछूँ  मैं किसी को ऐसे दिन तूने क्यूँ दिखाये……!!!

खुद की तकदीर और किस्मत की लकीर से लड़ती,
इस ज़िन्दगी को क्या दूँ मैं कोई मुझे बतलाए,
हाथों में रखूं उसके मैं कलम और किताबें,
या दो पैसे के राशन से उसके कुछ दिन कट जाये
खुदा  से पूछूँ  मैं किसी को ऐसे दिन तूने क्यूँ दिखाये……!!!

दया की भीख दिखाकर क्या गलती कर रही हूँ मैं,
ये सवाल दिल में उठे बार-बार और मुझे सताए,
सही क्या है और गलत है क्या, इस असमंजस में रहकर,
उस मासूम को देख मेरा मन कुछ समझ न पाए,
खुदा  से पूछूँ  मैं किसी को ऐसे दिन तूने क्यूँ दिखाये……!!!

कहते है स्वावलंबी होना इस दुनिया का सबसे ऊँचा कर्त्तव्य है,
पर कर्म और धर्म के बीच फंसे इंसानी मन को इन सब का फर्क कैसे दिखलाये,
मांगूं मैं दुआ में रोज़ यही की खुदा की रेह्मियत का असर हो ऐसा,
कि इंसान- इंसान में फर्क न रह जाए ...........!!!

 निशा :)smile always

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