Friday, August 5, 2011

wo ek naam ....

मन कि एक बंद किताब के पन्नो पे वो एक नाम आया....


फिर से अपने साथ उनसे बरसो मे मिलने की एक शाम लाया..........


देखा उन्हे सामने तो फिर जज्बातों का एक दौर यादों का एहसास बन आंखो मे छाया.......................


गुजरते पलो कि वो मिठी यादों का मिले जुले एहसास ने फिर से मुझे उनसे मिलाया...........................


जिन आंखो मे खुद के लिये दिखता था अंतरिम प्यार कभी आज उन्ही ने मुझे खुद से अजनबी बनाया.............


जिस मोड पर खडे होकर करी थी शुरुवात उन जज्बातों की ..........................

आज उसी मोड पर उन अनगिनत एहसास से लिखी किताब के उन पन्नो को बिखरा हुआ पाया.....................


उसके घर के आँगन मे जहां खिले थे नये उम्मीद के फूल कभी....................

आज उन्ही खुबसुरत क्यारियो ने काटो कि चुभान का एहसास कराया.....................


जाते- जाते उनकी नजरो से जो हुआ सामना मेरा..........................


टूटती ख्वाहिश और बीखरती उम्मीद के जज्बात के सैलाब को मैने आंखो मे नमी के साथ पाया ..............

No comments:

Post a Comment