Friday, January 8, 2010

ख्वाहिशो की उडान

ख्वाहिशो की उडान

मेरी ख्वाहिशो की उडान हर वक़्त अपना मकाम धुन्दती है .…….

सपनो के दामन से निकल कर हकीक़त का आशियाँ बुनती है ...……

चाहतो का समंदर है इतना गहरा की उसमें डूब जाऊँ मैं ..………

इसलिए उम्मीद किस्मत के बनाये हर एक रास्ते को चूमती है ...……..

मेरे एहसास कहते है मुझसे की चल आज जी ले जरा …………..

खुशियों और छोटी - छोटी उम्मीदों को चल एक धागे में पिरो ले जरा ….

कल कौन सा मंजर तुझे रुलाएगा ……

और कौन से रस्ते में मुस्कराहट का हर एक एहसास खिल जायेगा …….

ना कोई जनता है ये ना कोई जान पायेगा......

मेरी तमन्नाओ को उडान देना चाहती हू मैं …….

जिंदगी की बनायी हर एक रस्म को जी लेना चाहती हू मैं …….

इसलिए तो मेरी ख्वाहिशो की उडान हर वक़्त अपना मकाम धुन्दती है .…….

सपनो के दामन से निकल कर हकीक़त का आशियाँ बुनती है ...……


हर रात मेरी सोच में एक नए ख्वाबो की दस्तक होती है …………

चैन भरी नींद में एक खामोशी सोती है ……..
उन ख्वाबो में अरमानो का वो भवर बसता है ………
जो खामोशी भरी नींद में भी जगता है …………..
आँख खुलते ही ख्वाबो का टूटना नज़र आता है ………
पर एक नए उजाले के साथ नयी रौशनी की किरण दिखा के जाता है ……….
रौशनी की वो किरण नए अरमानो का रौशन जहाँ बनती है ……..
मन में बसी सारी इच्चाऊ को नया रूप और नया रंग देके जाती है ……
इसलिए तो मेरी ख्वाहिशो की
उडान हर वक़्त अपना मकाम है .…….
सपनो के दामन से निकल कर हकीक़त का आशियाँ बुनती है

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