Thursday, April 22, 2010

एक अधूरी ख्वाहिश ...............

ख्वाहिशो के पुरे होने का था मुझे इंतज़ार.......

प्यार में डूबी चाहत पर था मुझे ऐतबार........
बंद आँखों में एक तस्वीर छुपा रखी थी............
तेरी यादों के एहसास के साथ तुझे पाने की उम्मीद लगा रखी थी...........

उस उम्मीद की हर एक डोर से था मेरा रिश्ता जुड़ा ....
कभी लगता था तू अपना कभी एक दम जुदा जुदा ......
चाहत के पन्नो पे लिखी कुछ ऐसी अनकही बातें .......
यादों के झरोखों को खोले हुए ऐसे ही कट गयी जाने कितनी रातें ........
पूरी हो ना पाई ये अधूरी दास्ताँ .....
तेरे मेरे बीच जाने क्यूँ आई ऐसी दूरियां ...........
पर फिर भी उन ख्वाहिशो के पुरे होने का करती थी मैं इंतज़ार ....
क्यूंकि हर पल प्यार में डूबी चाहत पर था मुझे ऐतबार ........
भीगी पलकों के बीच तेरे एहसास को छुपा कर रखा था .....
सब की नजरो से छुपकर तुझे मैंने आँखों में बसा के रखा था ......
ज़िन्दगी के हर एक मोड़ ने मुझे कितनी बार हैरान किया .......

तन्हाई ने हमेशा मुझे मुझमे ही हज़ार सवालो के बीच छोड़ दिया ...
कई बार तुझ तक पहुंचू तुझसे लडू तुझसे कह दू ...........
इस कोशिश को मन के अन्दर मैंने दबा के रखा था ..............
दिल के जज्बातों का एक महेल मुझमे मेरे अन्दर मैंने सजा के रखा था .............
इसलिए तुझे ना पाकर मैंने ये जाना है .........
की तू मेरी उम्मीदों और जज्बातों का वो अनकहा फ़साना है ...................
जिसको मन की तस्वीरो से उभर कर मैंने आज पहचाना है ...............